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माँ पर बेहतरीन गीत //kavi kundan

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 माँ  ख्वाबों में तू है ख्यालों में तू मेरा है जन्नत मेरी है आरज़ू। तूझे दिल में बसाया है पलकों पर बैठाया है अपने मन के मंदिर में सिर्फ तेरा घर बनाया है मुझमें बहता हर रक्त है तू मेरा है जन्नत मेरी है आरज़ू। तू भगवान हमारा है तू पहचान हमारी है तूझे कैसे बताऊँ माँ तू तो जान हमारी है सांसों में तू है धड़कन में तू मेरा है जन्नत मेरी है आरज़ू। कुन्दन कुंज  पूर्णिया, बिहार 

बदल दे तकदीर

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  बदल दे तकदीर -------------------- उम्मीद की किरण से, बाँध दे शमा को। मजबूत इरादों से, लांघ दे आसमां को।। देख तेरी मंजिल, तेरी राह देख रही है। आज तू कर फ़तह, खुद के अरमां को। वक्त है तुम्हारा, वक्त तुम्हीं से बदलेगा। साध्य दे लक्ष्य को, पत्थर भी पिघलेगा। थामकर चलता चल, मन की डोर को। इस माया नगरी में,तेरा मन भी मचलेगा। यकीन रख खुद पर, तू खुद का साथी है। तू तम को हरने वाला, ज्योत की बाती है। मत खो हौसला को, एक छोटी  हार से। हर हार के बाद, जीत की बारी आती है।। जो अडिग रहता है, हर मुसीबत में यहाँ। एक दिन उसी के पीछे, चलती है कारवाँ। बनकर असि चीरता जा, तू हर तूफां को। अगर बदलना है कुछ,बदल दे तकदीर को। कुन्दन कुंज बनमनखी, पूर्णिया 30/08/20

सुन्दर तस्वीर

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 चित्र आधारित कविता  प्रेम संग पिहुवन मातु अवतारी। सौम्य सूरत लगे नयन कटारी।। स्नेहिल सरोवर भयो बलिहारी। चंदन वन सम, सूता है प्यारी।। हरित चीर  सोहे कंगन, बाली। अद्भुत छटा संगम है निराली।। पुष्पित पुलकित अहो भाग्यशाली। मधुवन सम तन यौवन मतवाली।। मधुर मुस्कान रूप है सुहावन। प्रिय प्रीत मन उर है लुभावन।। देख दृश्य कुंज भाग्य इठलावे। राग भैरवी गीत सबको सुनावे।। कुन्दन कुंज बनमनखी, पूर्णिया 

परी

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  परी  भाल तिलक मृगनयनी।  चंचल मन घर की मयनी। माँ की जान पिता की प्यारी। परियों जैसी लगती हो न्यारी। रूप लुभावन, मन भावन। जन्मदिवस है, तेरा पावन। मधुर मिठास, तेरी वाणी। पलकों पे बैठाई है नानी। चले सदा है तेरी मनमानी। लगती हो परियों की रानी। काली घटा बदरी बन घुमडे। छोटे-छोटे प्यारे, तेरे नखरे।। स्वेत वरण है तुझको भाती। अनंत खुशियाँ तूझमें पाती। तुम्हें मिले यश मेरी है कामना। मैं प्रभु से करता हूँ आराधना।। कुन्दन कुंज बनमनखी, पूर्णिया 6201665486

प्रातः

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  प्रातः   ------- मंद - मंद बहती बयार। सुरभित संगम मनुहार। गगन चूमती सिंधु जल। पावन पुनीत है संसार। कैनवास पे उकेरें रंगों का,  अद्भुत  चित्रों  का भंडार। जीवंत बनाए नभ को यह,  प्रकृति का सुंदर उपहार।।  रक्त तिलक है भाल विराजे।  रश्मि पहुंचे हर घर दरवाजे।  नव उर्जा से सिंचित तन मन।  उद्वेलित आतुर कार्य को जन।  काया कल्प गुण चमत्कारी,  रोग  विनाशक  पीड़ा  हारी।  प्रातः की औषध वाली हवा,  चिर आयु बनाती है हमारी।।  नित्य करे जो प्राणायाम।  उठकर सुबह और शाम।  सबल तन समृद्ध विचार।  बढे तेज मस्तिष्क आयाम।  कुन्दन कुंज  बनमनखी,पूर्णिया  21/08/20

नज्म़

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  नज्म़   ------ मोहब्बत में मैंने खुद को, खुद से भूला दिया। जफ़ा की उसने मुझसे,बेवफ़ा मुझे बना दिया। पलकों पर बैठाया था, जिसको मैंने अपना। माना रब्बा जिसको, जिसको अपना सपना।  इक पल में उसने मुझे, नजरों से गिरा दिया। जहर जिंदगी का, मुस्कुरा कर पिला दिया।। झूठे  वादें  कसमें, तेरी वो  बेखयाली  बातें। संग बिताई, वो भींगी- भींगी बरसाती रातें।।  मुझसे मुझको तूने, क्यों इतना खफ़ा किया।  खुद के नजरों में मुझको, कातिल बना दिया।  आँखों से बहती नदियाँ,कटती नहीं है रतिया।  मुझसे मुझको तूने,क्यों इस कदर जुदा किया।  कुन्दन कुंज  बनमनखी, पूर्णिया  17/08/20

स्वतंत्रता दिवस

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 स्वतंत्रता दिवस   -------------------------------- देश का मान तिरंगा है, देश का शान तिरंगा है। नभ को चुमती मान बढ़ाती,मेरी जान तिरंगा है। माँ रक्त का आँसू बहाई,अपने सूताओं को खोई है।  बहना टूटी तिल-तिल कर, पत्नी ने सुहाग गंवाई है।  लाखों वीर  दिवानों ने, अपनी  जवानी  खोया है।  माता पिता संग देश रोया, संग में नभ भी रोया है।  रक्त से सनी धरा भी रोई, गिरी का उर पसीजा है।  सुमन पग तल पुनीत हुआ,सागर ने पाँव पखारा है।  बढ़ते चले अंगारों पर, असि दुश्मन सीने उतारा है।  लिख गये अमर वो गाथा,अब स्वतंत्र हिंद हमारा है।  आजाद हुआ पिंजरे से पंछी, नभ में पंख पसारा है।  खुशियों के पर लगे, चहुँ ओर हिंद का जयकारा है।।  वर्षों बीत गयी आजादी को, स्वाधीन भी पराधीन है।  जिसने खोया अपना सब कुछ, आज वही बेसहारा है।  दुश्मन बना भाई भाई का, कट्टरपंथी इक सहारा है।  जाति धर्म के नाम पर, सिंचित रक्तों का फव्वारा है।  हिन्दू, मुस्लिम,सिख,ईसाई, हँसकर फंदे से झूल गए। सबने दी आजादी हमको, फिर हम ये कैसे भूल गए।  आओ हम प्र...

चमकू का रिसता घर

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चमकू का रिसता घर  -------------------------- स्वर्ग से भी सुन्दर, है मेरा घर, खिलता धूप, झूमती है बयार। हाड़मांस है, बाँस,पंक, घास,  सर पर लाल टाली का पहाड़।  मौखा सोहे सप्त रंगी चित्र,  घर में नहीं लगा है किवाड़।  कहूँ चूहा बसे कहुँ है सुराग।  स्वर्ग से सुन्दर,मेरा संसार।  पापा मम्मी हम साथ रहे।  भैया का छोटा है परिवार।  खुशियों से सजा, मेरा घर,  मिलता सबकों जहाँ प्यार।  इन्द्र  देव  की, अनुकम्पा  से।  छत से गिरे सावन की फुहार,  शीत, उष्ण  होता  है  मनुहार,  जब उपजती है फसल अपार।  पुरखों की कुछ जागीर मिली।  मत्स्य का चला आ रहा व्यापार,  घर बनाए या बच्चों को शिक्षा दे,  अब बाबूजी भी रहते हैं बीमार।  यह कैसी विपदा है आन पड़ी?  ईश करो मेहनतकश का जुगाड़।  गाँव, शहर, हाट सब बंद पड़े हैं।  वैश्य  वर्ण  का  कर दो उद्धार।।  कुन्दन कुंज  बनमनखी, पूर्णिया  6201665486 

किसान

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  किसान   ---------- हार को जीत में बदलने वाला, होता है किसान। मंदिर में है पाषाण की मूरत,खेतों में है भगवान।  हर मुश्किल  का डटकर, करता है मुकाबला। अन्न देने वाले  देवता का, होता नहीं निबाह।। अपने खून से सींच कर, जो उपजाते हैं अन्न। झूल जाते फंदे से,होता नहीं सूता का विवाह। मेहनत की अग्नि में जलकर, अन्न उपजाते हैं।  फिर क्यों साहूकारों बिचौलियों से,ठगे जाते हैं।  जिन पर लिखी जाती है, सैकड़ों गीत ग़ज़ल। उन्हें क्यों नहीं मिल पाता है, उचित सम्मान।। हमारे हलक तक अन्न पहुँचाने वाले देवता का। क्यों होता है,अपने ही घरों में बारंबार अपमान।  अर्थ व्यवस्था की रीढ़ होता है, देश का किसान। मैं हूँ किसान का पुत्र, मुझे है खुद पर अभिमान। कुन्दन कुंज बनमनखी, पूर्णिया

रक्षाबंधन पर कविताएं

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रक्षाबंधन ------------- आई  राखी  का त्यौहार। खुशियाँ  लाई है हजार।। बहना झूमें  खुशियों संग। पा भाई का अटूट प्यार।। रोली कुमकुम थाल लाई। आरती का दीप जलाई।। बाँध  कलाई  पर  राखी। भाल पर तिलक लगाई।। उमंगों के शिखर पर चढ़। भैया ने राखी बँधवाया।। बादल भी उमर घूमर कर। पावन पुनीत गीत गाया।। बहन माँ सम होता रिश्ता। भाई है बहना का फरिश्ता।। हर संकट में बन कर ढाल। भाई लेता है मोर्चा संभाल।। एक कसम दिलवा दो बहना। मानें भाई बाबू माँ का कहना।। रक्षा करे हर किसी की बहना। वो लेकर योद्धा का अवतार।। आई  राखी  का त्यौहार। खुशियाँ  लाई है हजार।। कुन्दन कुंज बनमनखी, पूर्णिया 6201665486 02/08/ 20 रक्षाबंधन दूसरी कविता - 02 कवयित्री - सोनम चन्द्रा  पूर्णिया, बिहार  भैया तुम इस राखी पर आना   भैया तुम इस बार राखी में आना,  बहना के हाथो से राखी बंधवाना।  नहीं चाहिए कुछ तुमसे भैया,  बस तुम बहना पे आशीष बनाना।  इसी तरह मार्गदर्शन दे कर,  हमें अपनी मंजिल तक पहुँचाना।  तुम करते फ़िक्र कितनी,...

आवेदन पत्र कैसे लिखें?

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आवेदन संख्या - 1 अपने प्राचार्या को दो दिनों की छुट्टी के संबंध में आवेदन पत्र लिखे।  उत्तर -  सेवा में,          श्रीमान् प्रधानाध्यापक महोदय!            आ. मध्य विद्यालय बाल भारती                बनमनखी (पूर्णिया ) द्वारा :- वर्ग शिक्षक विषय :- दो दिनों की छुट्टी के संबंध में। महाशय;          सविनय निवेदन यह है कि मेरी माँ बहुत बीमार है। जिसके देख भाल के लिए घर पर कोई नहीं है, मेरे सिवाय। इसलिए मैं दिनांक - 03.05.20 से 05.05.20 तक अपने वर्ग से अनुपस्थित रहूँगा।            अतः श्रीमान् से नम्र निवेदन है कि मुझे उपरोक्त दिनों की छुट्टी देने की कृपा करें। ताकि मैं अपनी माँ की सेवा कर सकूँ। इसके लिए मैं श्रीमान् का सदा आभारी रहूँगा।  आपका आज्ञाकारी छात्र     नाम - कुन्दन कुंज      वर्ग - पाँच      क्रमांक - 05     दिनांक - 03.05.20  आवेदन संख्या - 2 बहन की शादी में शामिल हो...