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माँ पर बेहतरीन गीत //kavi kundan

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 माँ  ख्वाबों में तू है ख्यालों में तू मेरा है जन्नत मेरी है आरज़ू। तूझे दिल में बसाया है पलकों पर बैठाया है अपने मन के मंदिर में सिर्फ तेरा घर बनाया है मुझमें बहता हर रक्त है तू मेरा है जन्नत मेरी है आरज़ू। तू भगवान हमारा है तू पहचान हमारी है तूझे कैसे बताऊँ माँ तू तो जान हमारी है सांसों में तू है धड़कन में तू मेरा है जन्नत मेरी है आरज़ू। कुन्दन कुंज  पूर्णिया, बिहार 

नज्म़

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  नज्म़ ----------- मैं परेशान हुआ अपने ही शहर में। जख्म़ी हुआ दिल अपने ही घर में। कटता नहीं सफर डसती डगर है। गुजर  गई हैं रातें  उदास सहर है। तन्हा रहा हूँ मैं  हर  पल अकेला। मेरा सब कुछ इधर- से - उधर है।। जख्म़ी हुआ दिल अपने ही घर में। अटकी हुई हैं सांसें मौत ए शाख पे। रो लेना तू लिपट कर मेरी राख से। लिख दिया है खत मैंने खूँ से अपने। जा कर ले लेना मेरे घर के ताख से। टूट गयी आशाएँ समुंदर के लहर से।  मुकम्मल हुआ न गीत इक भी बहर में। जख्म़ी हुआ दिल अपने ही घर में।। डराती रही यादें, तेरी यह कह कर।  वो मिलेगी अब नहीं तूझे उमर भर। कैसे बताता मैं कि तू मेरी जान है।  मेरी विरान जिंदगी की पहचान है।। छिपा दी मैंने खुद को तेरी सजर में।  कातिल बना हूँ, मैं अपनी नजर में। जख्म़ी हुआ दिल अपने ही घर में।  ------------------------------------------- कुन्दन कुंज  पूर्णिया, बिहार  15/10/20

नज्म़

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नज्म़ ------------ अगर खता हुआ है तो खता होने दीजिए। इक दफ़ा फिर से हमें जफ़ा होने दीजिए। मैं  लूट  गया  मय के साथ मयखाने में। फिर से बेवफ़ा को बेवफ़ा होने दीजिए। बहुत अश्क़ बहाया है उसकी यादों में दिल। अश्क़ो की दरिया में इसे सफ़ा होने दीजिए। हर बार ठोकरें खाया है मुहब्बत के पत्थर से। हक है इसका इसे यार से खफ़ा होने दीजिए। इश्क़  बिकता है इस शहर में तो खरीद लें। इक दफ़ा दिल को घटा से नफा होने दीजिए। --------------------------------------------------------- कुन्दन कुंज बनमनखी, पूर्णिया 11/10/20

नज्म़

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  नज्म़  ------------------------------ खुद  को  तू आयाम  दे। पाँव  को  ना  आराम दे। बढता  चल अविराम तू। अपने  नाम को  नाम दे। ठाना  है  लक्ष्य  जो तूने। आज  उसे तू अंजाम दे। आत्मबल है तेरा साथी।  इसको  सदा सम्मान दे।  भुजबल को साध ज्ञान से।  खुद  को  इक  पहचान दे।  मन में लिए समर्पण भाव।  भीड़  में  अलग मुकाम दे।  सरहद पे है खड़ा हिमालय।  उसको  नित्य  सलाम  दे ।।  ---------------------------------- कुन्दन कुंज  बनमनखी, पूर्णिया  02/10/20

नज्म़ (किसने देखा है)

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 नज्म़   -------- इस सदी के चाँद को किसने देखा है। मौत होगी उससे पहले किसने देखा है। ठहर जाओ वक्त को खरीदने वालों। राजा को रंक बनते किसने देखा है। महकती कलियाँ तोड़ मुस्कुराते हो।  इन्हें दर्द से तरपता किसने देखा है।  धनु पे शर रख खुद पर अजमाते हो। मौत को करीब आते किसने देखा है।  चन्द मुसीबतों के फंदे से लटकने वालों।   मौत से जिंदगी हसीन है किसने देखा है।  खुद पे अकीन नहीं पर रब को मानते हो।  खुदा  जमीन  पर  है उसे  किसने देखा है। तरासता चल गतिशील होकर मेहनत से।  किस्मत का पन्ना पलटते किसने देखा है।। ----------------------------------------------------- कुन्दन कुंज  बनमनखी, पूर्णिया  30/09/20

नज्म़

नज्म़ ----------------------------------------- ग़मों का सागर, जख्म़ों की धारा। सिंधु से भी गहरा, प्यार हमारा।। डूब गया, अविश्वास की लहरों से, मिला ना जिसको, आज किनारा। मौसम  से  पहले ही, बदल  गया। अपनी खिलती, बागों का नज़ारा। किए जो वादें, साथ  निभाने  का। मुझको मिला ना, उसका सहारा।। चाहा उसे मैंने, खुद से भी ज्यादा। जीत कर भी बाजी, है मैंने  हारा।। जिस्म  से  रूह भी, जाने  लगी है। खोने  लगा  है नूर, चाँद सितारा।। जिसको हर पल था, मैंने निखारा। उसने  जीते  जी है, मुझको  मारा। खुशियाँ मिले उसे, मेरे हिस्सा का। मुझे मिल जाए दर्द, उसका सारा।। ------------------------------------------- कुन्दन कुंज बनमनखी, पूर्णियाँ बिहार 13/09/ 20

नज्म़

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  नज्म़   ------ मोहब्बत में मैंने खुद को, खुद से भूला दिया। जफ़ा की उसने मुझसे,बेवफ़ा मुझे बना दिया। पलकों पर बैठाया था, जिसको मैंने अपना। माना रब्बा जिसको, जिसको अपना सपना।  इक पल में उसने मुझे, नजरों से गिरा दिया। जहर जिंदगी का, मुस्कुरा कर पिला दिया।। झूठे  वादें  कसमें, तेरी वो  बेखयाली  बातें। संग बिताई, वो भींगी- भींगी बरसाती रातें।।  मुझसे मुझको तूने, क्यों इतना खफ़ा किया।  खुद के नजरों में मुझको, कातिल बना दिया।  आँखों से बहती नदियाँ,कटती नहीं है रतिया।  मुझसे मुझको तूने,क्यों इस कदर जुदा किया।  कुन्दन कुंज  बनमनखी, पूर्णिया  17/08/20