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माँ पर बेहतरीन गीत //kavi kundan

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 माँ  ख्वाबों में तू है ख्यालों में तू मेरा है जन्नत मेरी है आरज़ू। तूझे दिल में बसाया है पलकों पर बैठाया है अपने मन के मंदिर में सिर्फ तेरा घर बनाया है मुझमें बहता हर रक्त है तू मेरा है जन्नत मेरी है आरज़ू। तू भगवान हमारा है तू पहचान हमारी है तूझे कैसे बताऊँ माँ तू तो जान हमारी है सांसों में तू है धड़कन में तू मेरा है जन्नत मेरी है आरज़ू। कुन्दन कुंज  पूर्णिया, बिहार 

जनसंख्या

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विधा- कविता ----------------------- विषय - जनसंख्या ----------------------- इस निर्जन वसुंधरा पर, लिया मनुज अवतार! प्रकृति के गर्भ में पल, किया  उसी  पर वार!! जन - जन मिल बना लिया, हो गया है हजार! फैल चुका है चहुँ ओर, आज उसका परिवार!! ऐसे   पसर   रहा   है, मानो   जलकुम्भी पाद! लोलुप्ता  में आकर, कर रहा  जग को बर्बाद!! युवा कवि कुन्दन बहरदार  विष घोल तीनों चरों में, किया मौत का आगाज! रो रही  वेदनाओं  से, वसुंधरा  की  रूह  आज!! हे! मानुस  वक्त  है, करो  ना  इतना  अत्याचार! अभिमान की लावा से,  हो न जाये तेरा संहार!! -------------------------------------------- कुन्दन "कुंज" पूर्णिया, बिहार ०८/०६/२०