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माँ पर बेहतरीन गीत //kavi kundan

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 माँ  ख्वाबों में तू है ख्यालों में तू मेरा है जन्नत मेरी है आरज़ू। तूझे दिल में बसाया है पलकों पर बैठाया है अपने मन के मंदिर में सिर्फ तेरा घर बनाया है मुझमें बहता हर रक्त है तू मेरा है जन्नत मेरी है आरज़ू। तू भगवान हमारा है तू पहचान हमारी है तूझे कैसे बताऊँ माँ तू तो जान हमारी है सांसों में तू है धड़कन में तू मेरा है जन्नत मेरी है आरज़ू। कुन्दन कुंज  पूर्णिया, बिहार 

अभिलाषा

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विधा- कविता  -------------------------- विषय - "अभिलाषा"  -------------------------- मैं अभी हूँ इस बहार  का नया किसलय, मुझे गिरना उठ कर  चलना व संभलना है। भृंग बन साहित्य के अंतर्मन में उतरना है। शब्दों के शृंखलाओं से  उसके तह तक पहुंचना है। जैसे थिरकने से नूपुर  सरगम है छेड़ती,  मुझे भी शब्दों के ताल में  सरिता सी बहना है।  धड़कन की स्पंदन में ,  रक्त के कण-कण में,  पूरी काया को सिंचित  करना है।।  नवजात बन लिपटू अंक से,  अमृत का सार पी पलना है। स्वर्ण है लक्ष्य ठोकरें हैं बहुत,  रौंद कर इन मुसिबतों को  उनके गर्भ तक चलना है।।  रोक दे बवंडर को किसी  की हिमाकत क्या?  खड़ा हिमालय दहाड़ रहा,  सरहद की हिफाजत में,  अब साहित्य रस से पूरे  परिवेश को बदलना है।  मैं अभी हूँ इस बहार  का नया किसलय, मुझे गिरना उठ कर  चलना व संभलना है।। ------------------------------------ कुन्दन "कुंज"  बनमनखी, पूर्णिया (बिहार)  6201665486