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माँ पर बेहतरीन गीत //kavi kundan

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 माँ  ख्वाबों में तू है ख्यालों में तू मेरा है जन्नत मेरी है आरज़ू। तूझे दिल में बसाया है पलकों पर बैठाया है अपने मन के मंदिर में सिर्फ तेरा घर बनाया है मुझमें बहता हर रक्त है तू मेरा है जन्नत मेरी है आरज़ू। तू भगवान हमारा है तू पहचान हमारी है तूझे कैसे बताऊँ माँ तू तो जान हमारी है सांसों में तू है धड़कन में तू मेरा है जन्नत मेरी है आरज़ू। कुन्दन कुंज  पूर्णिया, बिहार 

दोहे

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  दोहे   ******************************* लूटा  गाँव  जवार है, कभी  बूझा न प्यास। नेता  बना  सियार  है, मन  से  टूटा आस। धुँआ - धुँआ है आसमां, जहरीला  है बास। काफ़िर को मिला घर है,संतों को बनवास। अन्न बिना  बबुआ मरे, छूट गया  रोजगार।  दिन रात  जो काम करे, उनपर अत्याचार।  मजदूर  किसान  व  युवा, हुआ  बेरोजगार।  प्रलोभन दे रहा हमें,विकसित करब बिहार।  जागृत   हुई   है  जनता, बदलेगी  सरकार।  जन जन से है आ रही, इक मत का हुंकार। ********************************** कुन्दन कुंज  बनमनखी, पूर्णिया, बिहार, ३०/१०/२०

दोहे (व्यंग्यात्मक)

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दोहे ------- राजनीति की खाट का, सिरम सा हित्यकार। उगल रहा  है आग अब, बनकर  भ्रष्टाचार।। उगते  हैं काटें जहाँ, वहाँ खिले  नहिं फूल। समाज में विष घोलता, बनकर माटी धूल।। दिनकर  पंत  कौन बने, कौन  बने  निराला। जायसी की पद्मावत, बच्चन का मधुशाला।। * हवाई  घर  बना रहा, लिखकर चार विधान। लहरों पर  पाँव रख कर, बन रहा है महान।। खो गया चकाचौंध में, साहित्यिक का ज्ञान। सपाट  मेंढ़क  कूप का, बना रहा  पहचान।। साहित्य को लालायित, भटक रहा चहुँ ओर।* युवा साहित्यकार को, क्यों मिलता नहिं ठौर।। ------------------------------------------------------- कुन्दन "कुंज"  पूर्णिया, बिहार