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माँ पर बेहतरीन गीत //kavi kundan

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 माँ  ख्वाबों में तू है ख्यालों में तू मेरा है जन्नत मेरी है आरज़ू। तूझे दिल में बसाया है पलकों पर बैठाया है अपने मन के मंदिर में सिर्फ तेरा घर बनाया है मुझमें बहता हर रक्त है तू मेरा है जन्नत मेरी है आरज़ू। तू भगवान हमारा है तू पहचान हमारी है तूझे कैसे बताऊँ माँ तू तो जान हमारी है सांसों में तू है धड़कन में तू मेरा है जन्नत मेरी है आरज़ू। कुन्दन कुंज  पूर्णिया, बिहार 

ग़ज़ल

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  ग़ज़ल   आज   सब  है। राज    शब   है। क्यों उसे जाना। रूष्ट    सब   है। बात  भी   रख। काम   कब   है। दिन   ढला   है। पास    रब    है। जीत  का  क्या। इक   सबब   है। अब  बदल  मत। बे    अदब    है। नाश     हो  गा। सत्य    हब   है। कुन्दन कुंज पूर्णिया, बिहार 

ग़ज़ल

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 1. ग़ज़ल   *******************/ कोई जाता है तो जाने दे। कोई आता है तो आने दे। तू  खुद का  एहतराम कर। बागी को बागी हो जाने दे।  ये  दोस्ती  तूझे  ले  डूबेगी।  वो जो खाता है तू खाने दे।  तू "तू है वो वो है जाना ना।  कोई  सोता  है तो  सोने दे।  जानू  तेरी  जाना  कैसी है।  ऐसी  बातों को  ना दाने दे।  जाने क्यों डर ता है तू यारा।  उन्हें दिल का मरहम लाने दे।  *********************** कुन्दन कुंज  पूर्णिया, बिहार  ३०/१०/२०

ग़ज़ल

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  नज्म़  -------------------------------------- मेरा दिल वापस कर दो तुम।  मेरा जख्म़ी दिल भर दो तुम। तन्हाइयों  में  मैं हूँ अकेला।  उसे  भी  पूरा   कर दो तुम। भटक रहा मन बावला बन। इसको आ कर ठहर दो तुम।  नींद जो छीनी है आँखों से।  उसको  जरा  इधर दो तुम।  परेशान हुआ जिन्दगी से मैं।  मुझको  अब  जहर दो तुम।  अगर वो भी नहीं मिलती है।  तो मौत को ही खबर दो तुम। खो जाऊँ मैं  अनंत नभ में। ऐसा कोई रहम कर दो तुम।  ------------------------------------- कुन्दन कुंज  बनमनखी, पूर्णिया  25/09/20

ग़ज़ल

 ग़ज़ल 1212 1122 1212 22 /112 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 किसी भी दर पे न फैलें हथेलियाँ मेरी।  ख़ुदा जो प्यार से भर दे तिजोरियाँ मेरी।  सिकुड़के बैठा है क्यों पेट में दिए घुटने बला की ठंड है ले जा रजाइयाँ मेरी।  हर इक बशर ने मेरी शान में क़सीदे पढ़े रक़ीब को ही न भायीं बुलंदियाँ मेरी।  शज़र हैं ठूंठ हवा गुल खिज़ां का मौसम है न जाने कैसे कटेंगी ये गर्मियाँ मेरी।  मदारी हूँ मैं मुहब्बत के गुर सिखाता हूंँ कभी तो देख तू भी आके ख़ूबियाँ मेरी।  जता न मुझको कि कुछ भी नहीं किया मैंने मैं डाल आया हूँ दरिया में नेकियाँ मेरी।  हुनर सिखाया जिसे ज़िंदगी का सब 'मीरा' वही पढ़ाए है मुझको कहानियाँ मेरी।  *** मनजीत शर्मा 'मीरा' ग़ज़ल 1212 1122 1212 22 /112 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 नहीं यक़ीन तुझे इश्क़ पे ए जाँ मेरी।  वगरना सुर्ख़-रू हो जाती दास्ताँ मेरी।  ग़ुरूर छोड़के आ जा मेरी पनाहों में तड़प रही है तेरे वास्ते ही जाँ मेरी।  बहुत से होते हैं शिकवे-गिले मुहब्बत में  लगाके बैठ न सीने से फब्तियाँ मेरी।  तेरे बिना तो ये गुफ़्तार भी नहीं करतीं...

ग़ज़ल

 ग़ज़ल  2122 1212 22/112 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 ज़िंदगी में कभी सहर न हुई।  हां मगर आपको ख़बर न हुई।  रात-दिन इंतज़ार था जिसका बात वो सामने मगर न हुई।  भूल जाऊँ मैं ग़म मुहब्बत के रात इतनी भी मुख़्तसर न हुई।  बस मुहब्बत ने तीरगी दी है वरना किस रात की सहर न हुई।  मुब्तिला हम रहे इबादत में पर दुआ फिर भी बा-असर न हुई।  पीठ पीछे ही वार होते रहे दुश्मनी रू-ब-रू मगर न हुई।  एक ही से हुआ था इश्क़ हमें फिर मुहब्बत भी उम्र-भर न हुई।  प्यार में कुछ न कुछ तो था बेजा जो मुहब्बत मेरी अमर न हुई।  प्यार से खेली प्यार की बाजी क्या हुआ गर मेरी ज़फ़र न हुई।  हुस्न में वो जमाल था उसके आंख मेरी इधर-उधर न हुई।  यार का हुस्न देख गूंगे हुए बात फिर हमसे रात-भर न हुई।  क़ब्र पर फूल हैं इबादत के जीते जी तो कभी क़दर न हुई।  शायरी थी वो ज़ेहन से ऊंची बात ये है के नामवर न हुई।  इश्क़ करके भी देख ले 'मीरा' इतनी भी तो अभी उमर न हुई।  *** मनजीत शर्मा 'मीरा'