माँ पर बेहतरीन गीत //kavi kundan

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 माँ  ख्वाबों में तू है ख्यालों में तू मेरा है जन्नत मेरी है आरज़ू। तूझे दिल में बसाया है पलकों पर बैठाया है अपने मन के मंदिर में सिर्फ तेरा घर बनाया है मुझमें बहता हर रक्त है तू मेरा है जन्नत मेरी है आरज़ू। तू भगवान हमारा है तू पहचान हमारी है तूझे कैसे बताऊँ माँ तू तो जान हमारी है सांसों में तू है धड़कन में तू मेरा है जन्नत मेरी है आरज़ू। कुन्दन कुंज  पूर्णिया, बिहार 

ग़ज़ल

 ग़ज़ल  2122 1212 22/112

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ज़िंदगी में कभी सहर न हुई। 

हां मगर आपको ख़बर न हुई। 


रात-दिन इंतज़ार था जिसका

बात वो सामने मगर न हुई। 


भूल जाऊँ मैं ग़म मुहब्बत के

रात इतनी भी मुख़्तसर न हुई। 


बस मुहब्बत ने तीरगी दी है

वरना किस रात की सहर न हुई। 


मुब्तिला हम रहे इबादत में

पर दुआ फिर भी बा-असर न हुई। 


पीठ पीछे ही वार होते रहे

दुश्मनी रू-ब-रू मगर न हुई। 


एक ही से हुआ था इश्क़ हमें

फिर मुहब्बत भी उम्र-भर न हुई। 


प्यार में कुछ न कुछ तो था बेजा

जो मुहब्बत मेरी अमर न हुई। 


प्यार से खेली प्यार की बाजी

क्या हुआ गर मेरी ज़फ़र न हुई। 


हुस्न में वो जमाल था उसके

आंख मेरी इधर-उधर न हुई। 


यार का हुस्न देख गूंगे हुए

बात फिर हमसे रात-भर न हुई। 


क़ब्र पर फूल हैं इबादत के

जीते जी तो कभी क़दर न हुई। 


शायरी थी वो ज़ेहन से ऊंची

बात ये है के नामवर न हुई। 


इश्क़ करके भी देख ले 'मीरा'

इतनी भी तो अभी उमर न हुई। 

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मनजीत शर्मा 'मीरा'

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