माँ पर बेहतरीन गीत //kavi kundan
ग़ज़ल 2122 1212 22/112
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ज़िंदगी में कभी सहर न हुई।
हां मगर आपको ख़बर न हुई।
रात-दिन इंतज़ार था जिसका
बात वो सामने मगर न हुई।
भूल जाऊँ मैं ग़म मुहब्बत के
रात इतनी भी मुख़्तसर न हुई।
बस मुहब्बत ने तीरगी दी है
वरना किस रात की सहर न हुई।
मुब्तिला हम रहे इबादत में
पर दुआ फिर भी बा-असर न हुई।
पीठ पीछे ही वार होते रहे
दुश्मनी रू-ब-रू मगर न हुई।
एक ही से हुआ था इश्क़ हमें
फिर मुहब्बत भी उम्र-भर न हुई।
प्यार में कुछ न कुछ तो था बेजा
जो मुहब्बत मेरी अमर न हुई।
प्यार से खेली प्यार की बाजी
क्या हुआ गर मेरी ज़फ़र न हुई।
हुस्न में वो जमाल था उसके
आंख मेरी इधर-उधर न हुई।
यार का हुस्न देख गूंगे हुए
बात फिर हमसे रात-भर न हुई।
क़ब्र पर फूल हैं इबादत के
जीते जी तो कभी क़दर न हुई।
शायरी थी वो ज़ेहन से ऊंची
बात ये है के नामवर न हुई।
इश्क़ करके भी देख ले 'मीरा'
इतनी भी तो अभी उमर न हुई।
***
मनजीत शर्मा 'मीरा'
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