माँ पर बेहतरीन गीत //kavi kundan

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 माँ  ख्वाबों में तू है ख्यालों में तू मेरा है जन्नत मेरी है आरज़ू। तूझे दिल में बसाया है पलकों पर बैठाया है अपने मन के मंदिर में सिर्फ तेरा घर बनाया है मुझमें बहता हर रक्त है तू मेरा है जन्नत मेरी है आरज़ू। तू भगवान हमारा है तू पहचान हमारी है तूझे कैसे बताऊँ माँ तू तो जान हमारी है सांसों में तू है धड़कन में तू मेरा है जन्नत मेरी है आरज़ू। कुन्दन कुंज  पूर्णिया, बिहार 

समसामयिक दोहे

 दोहे 

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स्नेह  जिसे सब  जाति  से, वह है  श्रेष्ठ  प्राणी।

जन  सेवा  जो  मनु  करे, वह  है  ज्येष्ठ  ज्ञानी। 


दया  नहीं  जिस  हृदय में, वहाँ  नहीं  भगवान। 

प्यासे  को  जो  जल  न दे, वह मनु रेत समान। 


बधिर  नृप  मूक  है प्रजा, सुनता किसकी बात। 

दोनों  व्यस्त  है  खुद  में, सर   खुजलाए  तात। 


वासना  प्रचंड  रूप धर, बनकर  कलयुग काल। 

सकल जगत जख्म़ी करे, धरकर रूप विकराल। 


मद्यपान,   चोरी,  हिंसा,  सबका   है   सरताज। 

युवा  पीढ़ी  भटक रहा, छोड़ - छाड़  कर काज। 


बेरोजगारी    बरफी,   सिरमौर ........भ्रष्टाचार। 

महफूज़   नहीं    बेटियाँ,  होता...... अत्याचार। 


जन   रखियो  पेनी  नजर  , सभी   मुहाने  चोर। 

किसान   हुआ   दिवालिया, रो   रहा   सूदखोर। 


रजनी  गहरी  हो चली, सगर  निशाचर  व्याप्त। 

तुम  ठहरो  न  वत्स  यहाँ, काल  बनी  है  रात। 

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कुन्दन कुंज 

बनमनखी, पूर्णिया,

( बिहार) 08/11/20




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