माँ पर बेहतरीन गीत //kavi kundan
दोहे
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स्नेह जिसे सब जाति से, वह है श्रेष्ठ प्राणी।
जन सेवा जो मनु करे, वह है ज्येष्ठ ज्ञानी।
दया नहीं जिस हृदय में, वहाँ नहीं भगवान।
प्यासे को जो जल न दे, वह मनु रेत समान।
बधिर नृप मूक है प्रजा, सुनता किसकी बात।
दोनों व्यस्त है खुद में, सर खुजलाए तात।
वासना प्रचंड रूप धर, बनकर कलयुग काल।
सकल जगत जख्म़ी करे, धरकर रूप विकराल।
मद्यपान, चोरी, हिंसा, सबका है सरताज।
युवा पीढ़ी भटक रहा, छोड़ - छाड़ कर काज।
बेरोजगारी बरफी, सिरमौर ........भ्रष्टाचार।
महफूज़ नहीं बेटियाँ, होता...... अत्याचार।
जन रखियो पेनी नजर , सभी मुहाने चोर।
किसान हुआ दिवालिया, रो रहा सूदखोर।
रजनी गहरी हो चली, सगर निशाचर व्याप्त।
तुम ठहरो न वत्स यहाँ, काल बनी है रात।
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कुन्दन कुंज
बनमनखी, पूर्णिया,
( बिहार) 08/11/20
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