रक्षाबंधन
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आई राखी का त्यौहार।
खुशियाँ लाई है हजार।।
बहना झूमें खुशियों संग।
पा भाई का अटूट प्यार।।
रोली कुमकुम थाल लाई।
आरती का दीप जलाई।।
बाँध कलाई पर राखी।
भाल पर तिलक लगाई।।
उमंगों के शिखर पर चढ़।
भैया ने राखी बँधवाया।।
बादल भी उमर घूमर कर।
पावन पुनीत गीत गाया।।
बहन माँ सम होता रिश्ता।
भाई है बहना का फरिश्ता।।
हर संकट में बन कर ढाल।
भाई लेता है मोर्चा संभाल।।
एक कसम दिलवा दो बहना।
मानें भाई बाबू माँ का कहना।।
रक्षा करे हर किसी की बहना।
वो लेकर योद्धा का अवतार।।
आई राखी का त्यौहार।
खुशियाँ लाई है हजार।।
कुन्दन कुंज
बनमनखी, पूर्णिया
6201665486
02/08/20
रक्षाबंधन दूसरी कविता - 02
कवयित्री - सोनम चन्द्रा
पूर्णिया, बिहार
भैया तुम इस राखी पर आना
भैया तुम इस बार राखी में आना, बहना के हाथो से राखी बंधवाना।
नहीं चाहिए कुछ तुमसे भैया,
बस तुम बहना पे आशीष बनाना।
इसी तरह मार्गदर्शन दे कर,
हमें अपनी मंजिल तक पहुँचाना।
तुम करते फ़िक्र कितनी,
ये कभी हमें जताते नहीं।
जिसके डांट में भी प्यार छलके,
भैया वो तुम हो और कोई नहीं।
हो मुसीबत कोई भी,
तुम ढाल बन रहते खड़े,
बहन पे कोई आँच न आए।
तुम हर मुसीबत से,
खुद अकेले लड़े।
प्रदेश में रह कर भी भैया,
तुम ये राखी का फर्ज निभाना।
हम बहनों की तरह ही,
तुम वहाँ हर बहनों की लाज बचाना।
हर बहनों की रक्षा कर,
तुम इस राखी का फर्ज निभाना।
लगे उम्र मेरी भी तुझको,
भैया तुम जियो हजारों साल।
हम बहनों का इकलौता भाई,
जीवन में हर पल रहे खुशहाल।
भैया तुम इस बार राखी में आना,
बहना के हाथों से राखी बँधवाना।
_Sonam Chandra ✍️
रक्षाबंधन पर तीसरी कविता - 03
कवयित्री - ज्योति किरण
45...कविता -बांधना है मुझे ऐसी राखी की डोर .....।
कितना प्यारा है ये बंधन ,
कितना न्यारा है ये बंधन ।
ये हमारा भी है बंधन ,
ये तुम्हारा भी है बंधन ।
तोड़ने से ना टूटे हो अटूट भईया,
बांधना है मुझे ऐसी राखी की डोर.....।
रोड़ी -चंदन लेकर आई ,
तेरी बहना मेरे भाई ।
उसे दे दो अपनी कलाई ,
करो प्यार की भरपाई ।
चाहिए मुझे बस यही प्यार भैया ,
बांधना है मुझे ऐसी राखी की डोर....।
आज मौसम ले अंगड़ाई ,
खुशहाली धरती छाई।
न जाने कितनी बहनों ने ,
हैं अपनी भाई गवाई ।
वे एकमात्र जिनके थे आधार भैया ,
बांधना है मुझे ऐसी राखी की डोर ......।
बहती है जहां ये गंगा ,
झूम रहा गगन तिरंगा ।
कोई ना ले हिंद से पंगा,
ये देश मेरा बहुरंगा ।
न मजहबों के बीच हो विभेद भैया,
बांधना है मुझे ऐसी राखी की डोर...।
मैंने बांधी है ये राखी ,
इसका कर्ज अभी है बाकी ।
थामो हाथ में बंदूक ,
पहनो वर्दी अपनी खाकी।
तुम भी सरहद पर होना शहीद भैया,
बांधना है मुझे ऐसी राखी की डोर....।
शायरा-ज्योति किरण,
मिर्जापुर, गोपालगंज(बिहार)
उपलब्धि -"दीपज्योति"कविता संग्रह 2016 में प्रकाशित।
रक्षाबंधन पर चौथी कविता - 04
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