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माँ पर बेहतरीन गीत //kavi kundan

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 माँ  ख्वाबों में तू है ख्यालों में तू मेरा है जन्नत मेरी है आरज़ू। तूझे दिल में बसाया है पलकों पर बैठाया है अपने मन के मंदिर में सिर्फ तेरा घर बनाया है मुझमें बहता हर रक्त है तू मेरा है जन्नत मेरी है आरज़ू। तू भगवान हमारा है तू पहचान हमारी है तूझे कैसे बताऊँ माँ तू तो जान हमारी है सांसों में तू है धड़कन में तू मेरा है जन्नत मेरी है आरज़ू। कुन्दन कुंज  पूर्णिया, बिहार 

गीत

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  गीत ----- - मेरे गीत अब मुझसे, रूठने लगा। हाथों से जाम जबसे, छूटने लगा। हिज्र की रातें, गमों का प्याला है। मेरे अरमान, जबसे टूटने लगा है। रात  है  शबनमी, काली  घटा है। बरसा  है  बादल, सूखी  धरा है।। भींगी हैं अँखिया, प्यासा है सागर। आशाओं का सूरज, डूब  रहा है।। मन  है  व्याकुल, सदमा  है गहरा। मेरे शब्द अब मुझे, चुभने लगा है। 2। जाना था तूझको, दिल छोड़ जाती। जैसा था मैं पहले, मुझे वैसा बनाती। अगर लेनी थी जान, तूझे मेरी जान। दर्द के बदले में, मुझे जहर दे जाती। हँस कर जहर को भी, मैं पी जाता। अब ये दिन भी, मुझे डसने लगा है।2। अपनों से भी, मैं बिछुड़ गया हूँ। जिन्दा रहकर भी, मैं मर गया हूँ। मेरी बेचैनियाँ,अब बढने लगी है। अब मेरी ये साँसे, घटने लगी है।। जिस्म से जान, निकलने लगी है। पल पल ये मन, मचलने लगा है। 2। कुन्दन कुंज बनमनखी, पूर्णिया 07/08/20