माँ पर बेहतरीन गीत //kavi kundan

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 माँ  ख्वाबों में तू है ख्यालों में तू मेरा है जन्नत मेरी है आरज़ू। तूझे दिल में बसाया है पलकों पर बैठाया है अपने मन के मंदिर में सिर्फ तेरा घर बनाया है मुझमें बहता हर रक्त है तू मेरा है जन्नत मेरी है आरज़ू। तू भगवान हमारा है तू पहचान हमारी है तूझे कैसे बताऊँ माँ तू तो जान हमारी है सांसों में तू है धड़कन में तू मेरा है जन्नत मेरी है आरज़ू। कुन्दन कुंज  पूर्णिया, बिहार 

नज्म़

 

नज्म़
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मैं परेशान हुआ अपने ही शहर में।
जख्म़ी हुआ दिल अपने ही घर में।

कटता नहीं सफर डसती डगर है।
गुजर  गई हैं रातें  उदास सहर है।

तन्हा रहा हूँ मैं  हर  पल अकेला।
मेरा सब कुछ इधर- से - उधर है।।

जख्म़ी हुआ दिल अपने ही घर में।

अटकी हुई हैं सांसें मौत ए शाख पे।
रो लेना तू लिपट कर मेरी राख से।

लिख दिया है खत मैंने खूँ से अपने।
जा कर ले लेना मेरे घर के ताख से।

टूट गयी आशाएँ समुंदर के लहर से। 
मुकम्मल हुआ न गीत इक भी बहर में।

जख्म़ी हुआ दिल अपने ही घर में।।

डराती रही यादें, तेरी यह कह कर। 
वो मिलेगी अब नहीं तूझे उमर भर।

कैसे बताता मैं कि तू मेरी जान है। 
मेरी विरान जिंदगी की पहचान है।।

छिपा दी मैंने खुद को तेरी सजर में। 
कातिल बना हूँ, मैं अपनी नजर में।

जख्म़ी हुआ दिल अपने ही घर में। 
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कुन्दन कुंज 
पूर्णिया, बिहार 
15/10/20



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