माँ पर बेहतरीन गीत //kavi kundan
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हार को जीत में बदलने वाला, होता है किसान।
मंदिर में है पाषाण की मूरत,खेतों में है भगवान।
हर मुश्किल का डटकर, करता है मुकाबला।
अन्न देने वाले देवता का, होता नहीं निबाह।।
अपने खून से सींच कर, जो उपजाते हैं अन्न।
झूल जाते फंदे से,होता नहीं सूता का विवाह।
मेहनत की अग्नि में जलकर, अन्न उपजाते हैं।
फिर क्यों साहूकारों बिचौलियों से,ठगे जाते हैं।
जिन पर लिखी जाती है, सैकड़ों गीत ग़ज़ल।
उन्हें क्यों नहीं मिल पाता है, उचित सम्मान।।
हमारे हलक तक अन्न पहुँचाने वाले देवता का।
क्यों होता है,अपने ही घरों में बारंबार अपमान।
अर्थ व्यवस्था की रीढ़ होता है, देश का किसान।
मैं हूँ किसान का पुत्र, मुझे है खुद पर अभिमान।
कुन्दन कुंज
बनमनखी, पूर्णिया
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