माँ पर बेहतरीन गीत //kavi kundan
हुंकार
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पीड़ देख कर पत्थर भी, मोम-सा पिघल जायेगा।
सीने में जो अनल है, लावा बन निकल जायेगा।
कब तल्क जुल्म सहेगा युवा,मजदूर और किसान।
खोखली वादों से रंजित घर भी बदल जायेगा।
वक्त का तकाज़ा लिए वक्त से, हम नहीं बदलते।
बार - बार ठोकरें खा कर भी, हम नहीं संभलते।
हैं मजबूर हम अपनी आदतों से आदतों के फेर में।
बिछड़ जाते हैं अपनों से पर खुद हम नहीं बदलते।
जुमलेबाजी, ख्याली वादों से, नहीं चलती सरकार।
बिन राशन पानी बिना जैसे नहीं चलता है परिवार।
कैसे खाये अरूआ चावल, हम पशु नहीं इंसान हैं?
जिन्हें सौंपी हमनें सत्ता आज बना वही भगवान् हैं।
घर में नहीं है दाना- पानी औ' जिंदगी हुई बेज़ार है।
दाल, सब्जी सभी है मंहगी, छीन गया रोज़गार है।
उठो हे!परिवर्तन के नायक तुम्हें मिला अधिकार है।
जनमत में है कितनी शक्ति दिखाना अबकी बार है।
जमीन दो हो जाती है और गिर जाती सरकार है।
संभल जाओ सत्ताधीश यह जन जन का हुंकार है।।
कुन्दन कुंज
बनमनखी, पूर्णिया( बिहार)
२७/१०/२०
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