माँ पर बेहतरीन गीत //kavi kundan

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 माँ  ख्वाबों में तू है ख्यालों में तू मेरा है जन्नत मेरी है आरज़ू। तूझे दिल में बसाया है पलकों पर बैठाया है अपने मन के मंदिर में सिर्फ तेरा घर बनाया है मुझमें बहता हर रक्त है तू मेरा है जन्नत मेरी है आरज़ू। तू भगवान हमारा है तू पहचान हमारी है तूझे कैसे बताऊँ माँ तू तो जान हमारी है सांसों में तू है धड़कन में तू मेरा है जन्नत मेरी है आरज़ू। कुन्दन कुंज  पूर्णिया, बिहार 

हुंकार

 हुंकार 

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पीड़ देख कर पत्थर भी, मोम-सा पिघल जायेगा। 

सीने में जो अनल है, लावा  बन  निकल  जायेगा।

कब तल्क जुल्म सहेगा युवा,मजदूर और किसान। 

खोखली  वादों से  रंजित  घर भी  बदल  जायेगा। 



वक्त  का तकाज़ा लिए  वक्त से, हम नहीं बदलते।

बार - बार  ठोकरें  खा कर भी, हम  नहीं संभलते।

हैं मजबूर हम अपनी आदतों से आदतों के फेर में। 

बिछड़ जाते हैं अपनों से पर खुद हम नहीं बदलते।



जुमलेबाजी, ख्याली वादों से, नहीं चलती सरकार।

बिन राशन पानी बिना जैसे नहीं चलता है परिवार।

कैसे  खाये अरूआ चावल, हम पशु नहीं इंसान हैं?

जिन्हें सौंपी हमनें सत्ता आज बना वही भगवान् हैं। 



घर में नहीं है दाना- पानी औ' जिंदगी हुई बेज़ार है।

दाल, सब्जी सभी है  मंहगी, छीन गया  रोज़गार है। 

उठो हे!परिवर्तन के नायक तुम्हें मिला अधिकार है।

जनमत में है कितनी शक्ति दिखाना अबकी बार है।


जमीन दो  हो जाती है  और गिर जाती  सरकार है। 

संभल जाओ सत्ताधीश यह जन जन का हुंकार है।। 



कुन्दन कुंज 

बनमनखी, पूर्णिया( बिहार) 

२७/१०/२०

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