माँ पर बेहतरीन गीत //kavi kundan

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 माँ  ख्वाबों में तू है ख्यालों में तू मेरा है जन्नत मेरी है आरज़ू। तूझे दिल में बसाया है पलकों पर बैठाया है अपने मन के मंदिर में सिर्फ तेरा घर बनाया है मुझमें बहता हर रक्त है तू मेरा है जन्नत मेरी है आरज़ू। तू भगवान हमारा है तू पहचान हमारी है तूझे कैसे बताऊँ माँ तू तो जान हमारी है सांसों में तू है धड़कन में तू मेरा है जन्नत मेरी है आरज़ू। कुन्दन कुंज  पूर्णिया, बिहार 

शोषण

व्यंग्यात्मक कविता पढें  शोषण 

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 नखरे दिखाकर वो मुझसे नजर फेर लेती है।

वो खूबसूरत हसीना मुस्कुरा के जान लेती है।

मैं चलता  बावला बन, जैसे  चलता है पवन।

मेरी मदहोशी के लिए आँखों से जाम देती है।

है मौसम गर्म पर सर्द हवाओं सा चलता है।

वो खुद़गर्जी का कंबल बनकर अंजाम देती है।

ठिठुरता,तरपता भूख से जब लड़खड़ाता हूँ। 

अरूआ चावल की रोटी बनकर आराम देती है। 

खींच लेता है खूँ जब जुमलेबाज काफ़िर ।

तब सूखी हड्डियों को उनकी पहचान देती है। 

रोता, बिलबिलाता गुमसुदा परिंदा को जनता। 

उनके हैसियत से बढ़कर उन्हें सम्मान देती है। 

फफोले पड़ते आशाओं पे पुनः होता शोषण।

 फिर भी मासूम जनता बेनाम को नाम देती है।। **************************************

कुन्दन कुंज 

पूर्णिया, बिहार 

२५/१०/२०


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