माँ पर बेहतरीन गीत //kavi kundan
सफर सहर बन गया
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सफर शून्य
सा लगने लगा है।
उमर किस्तों में
बटने लगी है।
न जाने कौन सी
बयार आखिरी होगी।
सांसों का स्पंदन
घटने लगा है।
क्षितिज की ओट
में अनंत नभ
ज्यों मद्धिम मद्धिम
सिमटने लगा है।
ले लो कुबेर
सारा तुम ।
बस कुछ लम्हा
मुझे लौटा दो।
घूम लूँ परिधि भर
इस दुनिया को
कोई मुझे इसके
केंद्र में बैठा दो।
धमनियों में
दौडता रक्त
दुर्बल होती
मांसपेशियां।
सभी सफर में
हमसफ़र बन कर
रह गया है।
दर्द, जख्म़ जिंदगी
के सारे
पानी बन बह गया।
अब थक गया है
मुसाफ़िर चलते चलते
सफर सहर
बन गया है।।
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कुन्दन कुंज
बनमनखी, पूर्णिया
10/10/20
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