माँ पर बेहतरीन गीत //kavi kundan
रात है शबनमी, काली घटा है।
बरसा है बादल, सूखी धरा है।।
भींगी हैं अँखिया, प्यासा है सागर।
आशाओं का सूरज, डूब रहा है।।
मन है व्याकुल, सदमा है गहरा।
मेरे शब्द अब मुझे, चुभने लगा है। 2।
जाना था तूझको, दिल छोड़ जाती।
जैसा था मैं पहले, मुझे वैसा बनाती।
अगर लेनी थी जान, तूझे मेरी जान।
दर्द के बदले में, मुझे जहर दे जाती।
हँस कर जहर को भी, मैं पी जाता।
अब ये दिन भी, मुझे डसने लगा है।2।
अपनों से भी, मैं बिछुड़ गया हूँ।
जिन्दा रहकर भी, मैं मर गया हूँ।
मेरी बेचैनियाँ,अब बढने लगी है।
अब मेरी ये साँसे, घटने लगी है।।
जिस्म से जान, निकलने लगी है।
पल पल ये मन, मचलने लगा है। 2।
कुन्दन कुंज
बनमनखी, पूर्णिया
07/08/20
Bhut khub dosttttt
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