माँ पर बेहतरीन गीत //kavi kundan
✍🏻✍🏻✍🏻संघर्ष गाथा ✍🏻✍🏻✍🏻
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संकल्प परिवार के सभी सदस्यों को मेरा प्यार भरा नमस्कार।
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परिचय -
नाम - कुन्दन कुमार बहरदार
माता - श्रीमती मंगनी देवी
पिता - श्री चन्देश्वरी बहरदार
पता- बनमनखी बस स्टैंड
जिला - पूर्णियां, राज्य - बिहार
योग्यता - बी. एस. सी. (पार्ट-0२)गणित
टी. एन. बी. काॅलेज, भागलपुर (बिहार )
जन्म तिथि - ५मई १९९९
शौक - पढना - पढाना, लिखना, पेंटिंग, योग, मार्शल आर्ट।
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मैं संघर्ष गाथा की छठी कड़ी लेकर आप सभी के बीच उपस्थित हूँ।
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बिहार के पूर्णियाँ जिला के अन्तर्गत बनमनखी नामक ग्राम में एक निर्धन निषाद(मछुआरा) रहता था। जिसका नाम चन्देश्वरी बहरदार और पत्नी का नाम मंगनी था। वे दोनों किसी प्रकार से अपनी गुजारा देहाड़ी मजदूरी करके किया करते थे । समय बितता गया... और तब उसके घर एक पुत्री का जन्म हुआ जिसका नाम - ऊषा रखा गया और इसी क्रम में.... पुनः एक पुत्री की प्राप्ति हुई जिसका नाम - बबीता रखा गया.... पुत्र मोह की चाह में.... और तब एक पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम - मुन्ना रखा गया... लेकिन एक और पुत्र की चाह... और फिर एक पुत्र का जन्म भी हुआ लेकिन वह कुछ ही दिनों का महमान रहा.. और इसी लालसा में एक पुत्र और हो जाए तब......परंतु पुनः एक पुत्री का जन्म हुआ... और उसके जन्म से घर में निराशा छा गई और पास पड़ोस वाले कहने लगे - "अब तैअ फंल्ना कै मोछ बिक जैते तिलक दैतै दैतै" और सब परिवार नियोजन का सुझाव देना लगा। लेकिन एक पुत्र और की चाह ने.......... और यही एक और की चाह में आज देश की जनसंख्या भी अनवरत बढती जा रही है। खैर छोड़िए........ और तब
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में ५मई १९९९ को सुबह ३बजे दिन शनिवार को एक बालक का जन्म हुआ। वह गरीबी के आग से उत्पन्न अपने कुल का पाँचवीं संतान और शायद आखिरी भी........ क्यों? अवतरित होने के साथ ही वह बीमारी के मुख में पलने लगा। परंतु भाग्यशाली बालक होने के कारण उसे देख पड़ोसी भी जलने लगा। जलता भी क्यों नहीं, क्योंकि जिस दिन उसका जन्म हुआ था, उसी दिन से घर में धन की वर्षा जो होने लगी थी। षष्ठम् दिन विधि विधान के साथ छठियारी हुई और नाम रखा गया- चुन्ना लेकिन उसकी नानी को यह नाम पसंद नहीं था और उसने उसके नाम को कुंदन कर दी।
अब चन्देश्वरी के जीवन में संघर्ष और भी बढ़ गया.......
पाँच बच्चों का लालन पालन जो करना था... वह दिन में मजदूरी करता और रात को मछली पकड़ने जाल लेकर कोसों दूर पैदल चला जाता..... अपने जान की परवाह किए बिना.... और धन अर्जित करता उसे अपनी पत्नी को दे देता.... पत्नी उसे चाणक्य नीति से खर्च करती और कुछ पैसे मटके में छिपाकर जमीन में गार कर रखती जाती जिसके कारण कई बार उसे मार भी खानी पड़ती थी...... अपने चारों बच्चों को तो नहीं पढ़ा लिखा सका लेकिन संस्कार कूट कूट कर भरा........
और तब तक कुन्दन पाँच वर्षों का हो चुका था और उसे पढाना चाहता था लेकिन घर की स्थिति बहुत खराब थी कभी-कभी भूखे रहने की नौबत आ जाती थी लेकिन वह नहीं चाहता था कि उसके और अन्य बच्चों की भांति कुन्दन भी अनपढ़ रहे। और तब सात वर्षों के उम्र में उसे पढ़ने के लिए एक विद्यालय में नामांकन करवा दिया। बच्चा भी पढने लगा और कक्षा में अच्छा प्रदर्शन भी करता था। धीरे-धीरे समय बीतता गया.... वह बच्चा की प्रतिभा और सीखने की प्रवृत्ति से शहर के अच्छे विद्यालय में नामांकन मिल गया।।
जहाँ वह अक्सर हास्य एवं व्यंग्य का पात्र भी बनता था क्योंकि वो वर्ग में सबसे लम्बा और ज्यादा उम्र का भी था लेकिन वह हमेशा डटा रहा और तीसरी, चौथी..... पाँचवीं में पहुँच गया और तभी उस बालक के जीवन में एक मोड़ .. घर की स्थिति खराब थी एक तरफ और बहनों की शादी दूसरी तरफ तो पिता चाहते थे उसे कान्वेंट से निकाल कर सरकारी में डालना लेकिन माँ ने ऐसा नहीं होने दिया। और वह बालक छोटी उम्र में ही काम करने लगा सुबह और शाम मछली बेचता और उसी से स्कूल की
फीस चुकाया करता था। जिसे देख उसके दोस्त लोग उसके पास बैठना नहीं चाहता था और मजाक भी उड़ाता था।
लेकिन उसकी प्रतिभा ने उसे वर्ग सात में तीसरा स्थान दिलाया जिससे सभी दोस्त उससे बात करने लगा और उससे पूछा करता था, तुम बिना ट्यूशन के यह कैसे किया? विद्यालय में भी सभी शिक्षक उसे बेहद पसंद करते थे खासकर हिन्दी, विज्ञान और गणित के शिक्षक। और अपनी कड़ी मेहनत से उसने 8 वीं कक्षा में पूरे विद्यालय में गणित एवं विज्ञान में सबसे अधिक नंबर लाया।।
और 9वीं में नामांकन करवाया और पुनः अपनी कड़ी मेहनत से मैट्रिक परीक्षा में 74.8 प्रतिशत नंबर लाकर गाँव एवं परिवार का मान बढ़ाया। खुद पर विश्वास होने के कारण वह इंटर में साइन्स लिया और गणित रखा जिसे देख बहुत सारे लोग यह कहकर डराने लगे कि यह बहुत भारी विषय है और रूपिया भी बहुत खर्च होती है लेकिन वह किसी की बातों को नहीं माना और मैदान में कूद पड़ा और पहली बार अंग्रेजी माध्यम से इंटर की परीक्षा देकर, पुनः प्रथम श्रेणी प्राप्त किया और 65.4 प्रतिशत नंबर लाकर सबको चकित कर दिया। क्योंकि उस बार पूरे बिहार में केवल 33 प्रतिशत बच्चे ही विज्ञान संकाय में उत्तीर्ण हुआ था।
और वह घर में रहने लगा क्योंकि उसे बाहर भेजने के लिए उसके पिता के पैसे नहीं था और वह पढाई छोडना नहीं चाहता और वह ट्यूशन पढ़ाने लगा और इसी बीच आईटीआई और कम्प्यूटर से ए. डी. सी. ए. करते हुए 65,000 हजार रूपिया भी जमा कर लिया और एक 8 हजार में फोन खरीदा और आॅन लाइन अध्ययन करने लगा और भागलपुर टी. एन. बी काॅलेज में बी. एस. सी. में नामांकन लिया और गणित रख लिया। अपनी बचपन को कलात्मकता और सिखने की आदत को जारी रखा और एक ही वर्ष में वह 700 से अधिक मुक्त एवं कविताएँ लिखी। और कई बड़े मंचों पर काव्य पाठ किया और सम्मान भी
प्राप्त किया। और आज भी अपनी मेहनत के बल पर घर से बाहर रह कर पढाई भी कर रहा है और पढा भी रहा है।
यह सब तभी संभव हुआ क्योंकि उसे स्वतंत्रता थी खुली आसमां उड़ने की। संघर्ष करने की तीव्र इच्छा शक्ति है।।
संघर्ष ही जीवन और जीवन ही संघर्ष है,
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आज भले ही वह कोई पद पर नहीं है फिर भी हजारों लोगों के दिलों में राज करता है। पर उसे खुद पर यकीन है उसका जन्म ही हुआ है इतिहास गढ़ने के लिए।। और इस ओर अग्रसर है।।
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विशेषता
1. पेंटिंग में कई सम्मान प्राप्त
2. 800 मीटर दौर में जिला में द्वितीय स्थान with रिकार्ड
और राज्यस्तरीय के लिए चुना गया।
3. योग में पारंगत
4. मार्शल आर्ट का छात्र और कई स्टण्ड में पारंगत
5. मिमिक्री का शौकीन
6. प्रभात खबर एवं आकाशवाणी द्वारा सम्मान प्राप्त
7. तीन साझा काव्य संग्रह का प्रकाशन और दर्जनों पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित।
8. काव्य कुंज का संस्थापक।
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असफलता
1. कई परीक्षा में फैल
2. अब तक दो सरकारी परीक्षा पास
Railway technicians and group - D दोनों में मैरिट लिस्ट में फैल।
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अब तक का उस बालक का सफर......
यानि कुन्दन का सफ़र.......
मुझे उम्मीद है आपलोगों को अवश्य पसंद आयेगी ।। मैंने बहुत सारी कठिनाइयों का वर्णन नहीं किया है।। हर गरीब परिवार के साथ घटित होता है।
धन्यवाद!
कुन्दन बहरदार
पूर्णिया, बिहार
6201665486
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