माँ पर बेहतरीन गीत //kavi kundan

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 माँ  ख्वाबों में तू है ख्यालों में तू मेरा है जन्नत मेरी है आरज़ू। तूझे दिल में बसाया है पलकों पर बैठाया है अपने मन के मंदिर में सिर्फ तेरा घर बनाया है मुझमें बहता हर रक्त है तू मेरा है जन्नत मेरी है आरज़ू। तू भगवान हमारा है तू पहचान हमारी है तूझे कैसे बताऊँ माँ तू तो जान हमारी है सांसों में तू है धड़कन में तू मेरा है जन्नत मेरी है आरज़ू। कुन्दन कुंज  पूर्णिया, बिहार 

जुदाई

विधा- कविता 
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विषय - जुदाई 
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सुना  है  कि वह अक्सर  मेरी बात करती है,
जब भी देखती दर्पण में मुझे याद करती है।। 

जब तक पास रही, 
चमन में बहार रहा। 
गई  है  छोड़  जबसे,
मैं अक्सर बीमार रहा।।
सुबह  से  शाम तक  मेरा इंतज़ार करती है,
जब भी देखती दर्पण में मुझे याद करती है।। 

रात होती है मगर,
नींद  आती  नहीं।
मखमली  सेज  है, 
क्यों  भाती  नहीं ।। 
मेरे वियोग में रोज वो तृण- सा बिखरती है, 
जैसे रेत में  मछलियाँ तरप  कर मरती है ।। 

जुल्म  का  ऐसा  कहर, 
वो फोन भी नहीं करती। 
मैं    इधर    रोता    हूँ, 
वो   उधर   है   रोती ।। 
जुदाई की लहर अक्सर हमें बर्बाद करती है, 
जब भी देखती दर्पण में मुझे याद करती है।। 

रचना काल-
३०.१२.१९ 

कुन्दन "कुंज" 
बनमनखी, पूर्णिया (बिहार) 
6201665486 


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