माँ पर बेहतरीन गीत //kavi kundan
दोहे
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राजनीति की खाट का, सिरम सा हित्यकार।
उगल रहा है आग अब, बनकर भ्रष्टाचार।।
उगते हैं काटें जहाँ, वहाँ खिले नहिं फूल।
समाज में विष घोलता, बनकर माटी धूल।।
दिनकर पंत कौन बने, कौन बने निराला।
जायसी की पद्मावत, बच्चन का मधुशाला।। *
हवाई घर बना रहा, लिखकर चार विधान।
लहरों पर पाँव रख कर, बन रहा है महान।।
खो गया चकाचौंध में, साहित्यिक का ज्ञान।
सपाट मेंढ़क कूप का, बना रहा पहचान।।
साहित्य को लालायित, भटक रहा चहुँ ओर।*
युवा साहित्यकार को, क्यों मिलता नहिं ठौर।।
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बहोत खुब👌👌👌
जवाब देंहटाएंWonderful
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार जी
हटाएंBhut sundar....👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार जी
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