माँ पर बेहतरीन गीत //kavi kundan
विधा- कविता
-----------------------
विषय - जनसंख्या
-----------------------
इस निर्जन वसुंधरा पर, लिया मनुज अवतार!
प्रकृति के गर्भ में पल, किया उसी पर वार!!
जन - जन मिल बना लिया, हो गया है हजार!
फैल चुका है चहुँ ओर, आज उसका परिवार!!
ऐसे पसर रहा है, मानो जलकुम्भी पाद!
विष घोल तीनों चरों में, किया मौत का आगाज!
रो रही वेदनाओं से, वसुंधरा की रूह आज!!
हे! मानुस वक्त है, करो ना इतना अत्याचार!
अभिमान की लावा से, हो न जाये तेरा संहार!!
--------------------------------------------
कुन्दन "कुंज"
पूर्णिया, बिहार
०८/०६/२०
बहुत सुन्दर रचना है जी।
जवाब देंहटाएंBhut khub ...kavi ji....lajabab kavita hain ...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार जी
हटाएंबेहतरीन,वाक्य में आपके शब्द मन को मौह देने वाले होते है👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार जी
हटाएंबहुत ही सुंदर २चना मन मोह लेती।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार जी
हटाएंMind-blowing 👍👌🤘
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार जी
हटाएंBhut khub, सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार जी
हटाएं