संदेश

जून, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

माँ पर बेहतरीन गीत //kavi kundan

चित्र
 माँ  ख्वाबों में तू है ख्यालों में तू मेरा है जन्नत मेरी है आरज़ू। तूझे दिल में बसाया है पलकों पर बैठाया है अपने मन के मंदिर में सिर्फ तेरा घर बनाया है मुझमें बहता हर रक्त है तू मेरा है जन्नत मेरी है आरज़ू। तू भगवान हमारा है तू पहचान हमारी है तूझे कैसे बताऊँ माँ तू तो जान हमारी है सांसों में तू है धड़कन में तू मेरा है जन्नत मेरी है आरज़ू। कुन्दन कुंज  पूर्णिया, बिहार 

अभिलाषा

चित्र
विधा- कविता  -------------------------- विषय - "अभिलाषा"  -------------------------- मैं अभी हूँ इस बहार  का नया किसलय, मुझे गिरना उठ कर  चलना व संभलना है। भृंग बन साहित्य के अंतर्मन में उतरना है। शब्दों के शृंखलाओं से  उसके तह तक पहुंचना है। जैसे थिरकने से नूपुर  सरगम है छेड़ती,  मुझे भी शब्दों के ताल में  सरिता सी बहना है।  धड़कन की स्पंदन में ,  रक्त के कण-कण में,  पूरी काया को सिंचित  करना है।।  नवजात बन लिपटू अंक से,  अमृत का सार पी पलना है। स्वर्ण है लक्ष्य ठोकरें हैं बहुत,  रौंद कर इन मुसिबतों को  उनके गर्भ तक चलना है।।  रोक दे बवंडर को किसी  की हिमाकत क्या?  खड़ा हिमालय दहाड़ रहा,  सरहद की हिफाजत में,  अब साहित्य रस से पूरे  परिवेश को बदलना है।  मैं अभी हूँ इस बहार  का नया किसलय, मुझे गिरना उठ कर  चलना व संभलना है।। ------------------------------------ कुन्दन "कुंज"  बनमनखी, पूर्णिया (बिहार)  6201665486 

जुदाई

चित्र
विधा- कविता  ------------------ विषय - जुदाई  -------------------- सुना  है  कि वह अक्सर  मेरी बात करती है, जब भी देखती दर्पण में मुझे याद करती है।।  जब तक पास रही,  चमन में बहार रहा।  गई  है  छोड़  जबसे, मैं अक्सर बीमार रहा।। सुबह  से  शाम तक  मेरा इंतज़ार करती है, जब भी देखती दर्पण में मुझे याद करती है।।  रात होती है मगर, नींद  आती  नहीं। मखमली  सेज  है,  क्यों  भाती  नहीं ।।  मेरे वियोग में रोज वो तृण- सा बिखरती है,  जैसे रेत में  मछलियाँ तरप  कर मरती है ।।  जुल्म  का  ऐसा  कहर,  वो फोन भी नहीं करती।  मैं    इधर    रोता    हूँ,  वो   उधर   है   रोती ।।  जुदाई की लहर अक्सर हमें बर्बाद करती है,  जब भी देखती दर्पण में मुझे याद करती है।।  रचना काल- ३०.१२.१९  कुन्दन "कुंज"  बनमनखी, पूर्णिया (बिहार)  6201665486...

ललकार

चित्र
विधा - कविता विषय - ललकार ---------------------- वीर सपूतों की शहादत, यूँ नहीं होगी जाया। सुन  ले  चीनी  तेरी हम, मिटा  देंगे  काया।। शांति  सद्भावना  का, मार्ग  तुम्हें  दिखाया। पालना से उठाकर हमने, चलना सिखाया।। आँखें पूरी खुलती नहीं, र" आँखें दिखाता है। हमारी जमीन छीनकर, हमीं को धमकाता है। सुन ले अबकी बार, गलवान में संहार होगा। खेत होगी तेरी, और खंजर आर पार होगा।। लाशें गिरेगी तेरी, बम गोलों का बौछार होगा। मत छेड़ हमें नहीं तो,चहुँ ओर चीत्कार होगा।। सामान बेचता है हमको, हमीं पे धौंस जमाता है। पीठ पीछे कायर तू, मेरी जमीं पे घर बनाता है।। छोड़ दे कायराना, नहीं तो चहुँ ओर प्रहार होगा। धू- धू जलेगा सामान, धराशायी  बाजार  होगा।। कर्ज देकर के, छोटे देशों को जाल में फंसता है। ब्याज नहीं चुकाने पर, उनकी जमीं हथियाता है।। तेरी  चतुराई  अब  यहाँ, हरगिज  नहीं  चलेगी। एक शहीद के बदले में,तेरी कई चि ताएं जलेगी।। नेपाल सुन ले तेरा भी, चीन संग बदहाल होगा। पाक खोयेगा पोक,जब भारत से धमाल होगा।। ----...

दोहे (व्यंग्यात्मक)

चित्र
दोहे ------- राजनीति की खाट का, सिरम सा हित्यकार। उगल रहा  है आग अब, बनकर  भ्रष्टाचार।। उगते  हैं काटें जहाँ, वहाँ खिले  नहिं फूल। समाज में विष घोलता, बनकर माटी धूल।। दिनकर  पंत  कौन बने, कौन  बने  निराला। जायसी की पद्मावत, बच्चन का मधुशाला।। * हवाई  घर  बना रहा, लिखकर चार विधान। लहरों पर  पाँव रख कर, बन रहा है महान।। खो गया चकाचौंध में, साहित्यिक का ज्ञान। सपाट  मेंढ़क  कूप का, बना रहा  पहचान।। साहित्य को लालायित, भटक रहा चहुँ ओर।* युवा साहित्यकार को, क्यों मिलता नहिं ठौर।। ------------------------------------------------------- कुन्दन "कुंज"  पूर्णिया, बिहार 

बाल मजदूर

चित्र
विधा- कविता  ------------------ विषय - बाल मजदूर  -------------------- बोलती कहानी  ------------------- ख्वाबों की दरिया, समंदर सी जवानी। छोटी-सी उमर में, यह कैसी कहानी? जिसे धूप से स्नेह, टपके छत से पानी। बयां करती मेहनत,  ये शिकन की निशानी।  हाय  रे! किस्मत,  तेरी कैसी मनमानी? भूख और बीमारी,  बढ़ाती परेशानी। देश का कोहिनूर,  लगाता है सानी।  रंजित  कोयला,  शासक ख़ानदानी।  लबों पर मुस्कान,  सबकी है ज़बानी।  जख्म़ों से भरा उर,  दिल है हिन्दुस्तानी।  लाखों बेबस बच्चों की,  है दर्द भरी ज़िन्दगानी।    चीख़ती  है  कलम,  बोलती  है  कहानी।।  कुन्दन "कुंज"  पूर्णिया, बिहार 

वट सावित्री व्रत

चित्र
विधा- कविता  ------------------------------ विषय - वट सावित्री व्रत ------------------------------ खोले पट ज्येष्ठ मास का, वट सावित्री का त्योहार!  जो शुक्ल पक्ष में वट पूजते, उन्हें मिले फल मनुहार!!  मिले ओजस्वी पुत्र उसे, लगाए सावित्री का ध्यान!  दीर्घायु हो पति देव का, और  पाए  अखंड  ज्ञान!!  ब्रम्हा, विष्णु  और  महेश, देते  हैं  उसे  वरदान!  पतिव्रत के संस्कारों का, जो नारी करे सम्मान!!  वट के नीचे कथा सुने, और जो करता है ध्यान!  अमरत्व की प्राप्ति होती, बाँझन भी पाए संतान!!  पतिव्रता  सावित्री  ने, तप  से  बचाई  थी  जान!  साल्व नरेश सत्वान को, मिला था एक जीवनदान!!  ----------------------------------------------- कुन्दन बहरदार  पूर्णिया, बिहार  6201665486 

जनसंख्या

चित्र
विधा- कविता ----------------------- विषय - जनसंख्या ----------------------- इस निर्जन वसुंधरा पर, लिया मनुज अवतार! प्रकृति के गर्भ में पल, किया  उसी  पर वार!! जन - जन मिल बना लिया, हो गया है हजार! फैल चुका है चहुँ ओर, आज उसका परिवार!! ऐसे   पसर   रहा   है, मानो   जलकुम्भी पाद! लोलुप्ता  में आकर, कर रहा  जग को बर्बाद!! युवा कवि कुन्दन बहरदार  विष घोल तीनों चरों में, किया मौत का आगाज! रो रही  वेदनाओं  से, वसुंधरा  की  रूह  आज!! हे! मानुस  वक्त  है, करो  ना  इतना  अत्याचार! अभिमान की लावा से,  हो न जाये तेरा संहार!! -------------------------------------------- कुन्दन "कुंज" पूर्णिया, बिहार ०८/०६/२०